Tuesday 16 July 2013

इश्क

इश्क में थोडा यूँ करने को जी करता है,
थोडा जीने को तो थोडा मरने को जी करता है,
इश्क में जैसे टूटी हुई माला की तरह बिखर जाऊं,
यूँ बिखर के थोडा सवरने को जी करता है।।

कभी अंधेरों में भी दूर कहीं वो लौ चमके,
और मीलो फैली ख़ामोशी में भी वो आवाज़ छनके,
वैसे दिल के खेल में प्यादा भी मेरे वज़ीर पर भारी है,
और हर पहर एक नए जशन की तैयारी है,
मौत तो चंद घड़ी की मेहमान अब तो लगती है,
अब ज़िन्दगी से थोडा डरने को जी करता है।।

वो मंदिर की घंटियाँ अब गवाही देंगी,
और वो मस्जिद के धागे अब रिहाई देंगे,
की कोई नुस्खा नही छोड़ा  है तुम्हे पाने का,
अब तो रस्ता ही नहीं पता वापस जाने का,
इन राहों पर चलते हुए बस ये जी करता है,
हर दफ़ा इश्क की गहराई में थोडा और उतरने को जी करता है।   
इश्क में थोडा यूँ करने को जी करता है,
थोडा जीने को तो थोडा मरने को जी करता है।।

Wednesday 24 April 2013

शुरुवात..

एक दिन निकला मैं अनजान सी राहों में,
लेने किसी को अपनी आहों में, मगर
अब चलते-चलते बहुत दूर निकल आया हूँ
और अब भूल चूका हूँ की शुरुवात कहाँ से की थी।

उसकी आवाज़ की खनक को सुर मान के,
उसके चहरे की चमक को सूरज मान के,
बस वो सूरज पकड़ने निकल पड़ा हूँ,
मगर  अब भूल चूका हूँ की शुरुवात कहाँ से की थी।

शुक्र है खुदा की रस्ते में वो मिली,
बिना कुछ कहे बस साथ में चली,
मैं भी बस साथ उसके चलता रहा,
क्यूंकि मैं भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।

रास्ते में मुझे सबने रुका,
हवायों ने रुका ,मंजिलों ने तो  दे दिया धोका
मगर मैं उसे देखकर  बस चलता रहा,
क्यूंकि मैं  तो भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।

बस उसी को मैंने दिल दिया
उसके हर दर्द को दिल से जिया
शायद ये दर्द सहना मेरी रज़ा थी
मगर लोग बोले पागल ये तो तेरी सज़ा थी,
सुनाई ही नहीं दी मुझे औरों की बातें
क्यूंकि मेरे कानो में सिर्फ उसकी सदा थी,
अब भी बस साथ उसके चलता रहा
क्यूंकि मैं भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।

एक दिन मैंने उससे कहा मेरा हाथ थाम लो, राहें आसान हो जाएँगी,
एक दिन हम पर भी ये किस्मत मेहरबान हो जाएगी,
वो बोली मैं ज़रूर चलती साथ तुम्हारे मगर ये राहें बहुत मुश्किल हैं,
दुनिया की रस्मे और कसमे इसमें शामिल हैं,
मैने उसे देखा और मुस्कुरा दिया,
क्यूंकि मैं भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।

वो मुझसे बोली तुम भी वापस लौट जाओ अपनी राहों में,
और खुश रहो अपनी खुशनुमा अदाओं से,
ये सुन कर मैं शायद उसी पल लौट जाता,
मगर मैं तो  भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।

आज खुश हूँ के साथ उसका प्यार है,
इकरार न सही कम से कम न साथ इनकार है,
यूँ ही मीलों चल सकता हूँ उसे देखते हुए
प्यार के मोती उसकी राहों में फ़ेकते हुए,
कुछ नंगे पाँव  चले के निशान देखकर भी अब आपस न जाऊँगा ,
क्यूंकि अगर वो साथ है तो मैं याद करना भी नहीं चाहोंगा,
की मैंने शुरुवात कहाँ से की थी।।

Friday 12 April 2013

उड़ने को जी करता है

आज फिर उड़ने को जी करता है,
राहों में यूँ पीछे जाने को जी करता है। 

मेरे हिस्से का निवाला तेरी दावत नहीं,
यूँ फड-फाड़ा के जीना मेरी आदत नहीं।

दिल का परिंदा ये गगन चूमना चाहता है,
हाथ पकड़ घटाओं का ये आसमा घूमना चाहता है। 

तोड़ कर पिंजरों को ये पंख झटकना चाहता है,
अनजान राहों पर ये फिर भटकना चाहता है। 

ये पर्वत, ये नदिया मुझे बुलाते हैं,
और रात की चादर में मुझे तारे सुलाते हैं।

आज़ादी भी सच में चीज़ बड़ी निराली है,
तुझसे मांगी नहीं, मैंने आज ये कमा ली है। 

हाथ फैलाये स्वागत मेरा नया जहाँ करता है,
बेफिक्र-बेपरवा थोडा और उड़ने को जी करता है।।   

Friday 5 April 2013

आशाओं की बिजली

शामो में एक सुबह छुपी रहती है कहीं,
उजालो में भी रातें बसी रहती हैं कहीं,
कुछ गमो के बादलों में आशाओं की बिजली होती है,
और बंजर खेत में भी नमी रहती है कहीं।

कभी आस्मा को भी धरती से मिलने की चाहत होती है कहीं,
और बर्फ में भी छुपी थोड़ी गर्माहट होती है कहीं,
कभी लफ़्ज़ों पर जज़्बात ठहर जाते है मगर
इन खामोशियों में एक आहत होती है कहीं।

ऐसे तो चाँद भी लाखों तारों में अकेला रहता है कहीं,
और चुपके से आखों से एक आसूं बहता है कहीं,
कभी एक इंसान ज़िन्दगी खुशहाल कर देता है,
और कभी भीड़ में भी अकेलेपन का एहसास रहता है कहीं।

यूँ तो सहारों की कमी नहीं राहों में मगर,
फिर भी इंसान बहक जाता है हर कहीं,
यूँ तो गम लिए सफ़र करता है मगर
फिर भी इंसान चहक जाता है हर कहीं,
दुखों के सागर में मुर्झाया सा रहता है,
मगर अपनों के चंद प्यार के अल्फाजों
से महक जाता है कहीं।।  

ऐसा देश बनाएँ

चलो मिलकर ऐसा देश बनाएँ,
जहाँ पर खुश रहे हर शख्स न कोई रो पाए,

ऍ मेरे वतन, तेरे सर की कसम 
खाते हैं हम, हम तुझे ऐसा देश बनायेंगे,
जहाँ नाम तेरा फक्र से लिया जाये।
ऍ मेरे वतन के लोगो, जागो, खोलो हाथ,
इससे पहले दम घुट जाये।।

अब मुझे चल चुकी है पता देश की एहमियत,
समझ आ गई है मुझे हकीकत,
बदल सकते है इस देश की तस्वीर हम,
जो साथ गर मिल जाएँ।

चलो मिलकर ऐसा देश बनाते हैं,
जहाँ अमीर-गरीब साथ चलें साथ खाएं।
जहाँ भाई-भाई में प्यार हो. 
न कोई दुल्हन दहेज़ के लिए जलाई जाये,
जहाँ किसान न मरे क़र्ज़ के तले,
न वो अपने परिवार को ज़हर खिलाये।

आओ इस वर्ष करें इसे देश का निर्माण,
जिसमे कश्मीर को कन्याकुमारी से मिलाया जाये।

हमने फैलाया है अब तक पाप इतना की,
दूषित हो गई है हमारे पाप धोते-धोते गंगा मैया,
तो फिर बताओ,
कहाँ जाकर नहाया जाये?

आओ इस वर्ष सारे मज़हब त्याग दें,
और सिर्फ एक मज़हब अपनाएं,
न रहे कोई हिन्दू-मुस्लिम,न सिख-इसाई,
चलो खुद को एक इंसान बनायें।

लाओ,अपने लहू में उबाल इतना,
जिससे हर बाँदा मरकर भी मरे नहीं, अमर हो जाये।

तू दिखा दे चल मौत को जज़्बा वो,
जो देख मौत ज़िन्दगी के सामने झुक जाये,
तू खुद में इतनी पवित्रता ला,
जो मेरे मरने पर गगन-आसमा लड़ जाएँ,
की तेरी आत्मा उसे मिले और वो पवित्र हो जाये।

हो गणतंत्र दिवस,या स्वतंत्रता दिवस,
तू गर्व से इसे इसे माना की, संग तेरे ये दिन सारा जहाँ मनाये।

ऐ वतन,दिल से दुआ है यही की बस देख लूँ एसा देश मैं और,
मेरी जां जय हिन्द कह सुकून से निकल जाये।।            

Monday 25 March 2013

कुछ लिख रहा हूँ ...

टूटे हुए दिल के फ़साने लिख रहा हूँ,
जो गा न पाया कभी वो तराने लिख रहा हूँ,
बगैर प्यार के भी सदियाँ बिताई हैं हमने,
कैसे बीते वो ज़माने लिख रहा हूँ।

कुछ मशहूर किस्से हैं आशिकी के,
मगर हमारी तो बस छोटी सी कहानी है,
याद रखे हमारे बाद भी लोग हमें,
बस इसलिए अपने भी कुछ अफ़साने लिख रहा हूँ।।

वो हम पर जां निसार करते थे,
वो हम से बेंतेहान प्यार करते थे,
बस उनकी दौलत-ए-इश्क सम्भाल रक्खी है हमने,
और कहाँ छुपाए हैं जो खज़ाने लिख रहा हूँ।।

खुशियों में शामिल जहाँ था हमारे,
गैर प्यारे बन गए थे हमारे,
मगर गुमों ने सबके मुखोंते खोल दिए,
और अपने कौन निकले बेगाने लिख रहा हूँ।।

कुछ लफ़्ज़ों को ग़ज़ल कहा था हमने,
चंद पत्थरों को ताजमहल कहा था हमने,
जहाँ बैठ कर साथ वक़्त गुज़ारा था हमने,
कैसे हुए वीरां वो ठिकाने लिख रहा हूँ।।       

Sunday 24 March 2013

#3

कभी यूँ दर्द सेहना अच्छा लगता है,
किसी बेगाने को अपना कहना अच्छा लगता है,
यूँ तो आसूँ निकलते हैं आँखों से हर शाम,
कभी कबार इस आँसुओं के साथ बहना अच्छा लगता है।। 
#2

इस इश्क के कई चहरे होते हैं,
खुली आँखों में भी सौ पहेरे होते हैं।
इतना आसाँ नहीं इश्क का दरिया पार करना,
कई मरतबा  इसके किनारे भी बहुत गहरे होते हैं।।   

हॉकी (HOCKEY)

सुनो दुनिया वालों, मैं भारत की तरफ से हॉकी खेलता हूँ,
अब क्या-क्या बताऊँ इस देश में मैं क्या-२ झेलता हूँ।

यहाँ  जाने क्यूँ राष्ट्रीय खेल का सम्मान नहीं होता,
यहाँ देश के खिलाडियों के पास खेलने को सामान नहीं होता।

अनजान सी ज़िन्दगी जीने को हम मजबूर होते हैं,
और यहाँ बस गेंद बल्ला पकड़ने वाले मशहूर होते हैं।

इस देश में अंजानो के हाथ खेल की सत्ता चलाई जाती है,
और भूखे खिलाडियों के चूल्हों में Hockey जलाई जाती है।

कहीं हार की कमाई भी हमारी जीत से ज्यादा है,
न जाने क्या खेल है ये, जहाँ राजा भी बना प्यादा है।

यहाँ तो गेंदों से गलियों में कॉच फूटते हैं,
और हॉकी के मैदानों में खिलाडियों के ख्वाब टूटते हैं।

एक सुनेहेरा सा ख्वाब था ध्यानचंद का वो ज़माना,
मुझे गर्व है इस खेल पर और मेरा फ़र्ज़ है इसे आगे बढ़ाना।

दस साल देश के लिए खेलने पर भी मुझे कोई नहीं जानता है,
और मेरा बेटा आज भी मुझसे किसी cricketer का autograph  मांगता है।।      

Friday 22 March 2013

वाह क्या बात है!

गम से उठता है सूरज, दुखों के संग डूब जाता है,
चंदा भी युहीं डर-डर के अब तो बाहर आता है,
ग़मों में जागती है सुबह, अब दुखों से भरी रात है,
फिर भी गर्व से कहता है इंसा अपनी तो क्या बात है!

लबों पर रहती है प्यास और भूख पेट में मरती है,
अपने लाल को घर से निकालने में अब हर माँ डरती है,
मौत से भी बुरी हो चुकी अब ज़िन्दगी की हालत है,
फिर भी गर्व से कहता है इंसा अपनी तो क्या बात है!

अब तो किसी के पीठ में किसी का खंजर रहता है,
अब लोगों के होंठों से लालच का थूक बहता है,
करते बुराई उसकी हैं,सामने कहते साथ-साथ हैं,
फिर भी गर्व से कहता है इंसा अपनी तो क्या बात है!

उड़ गई दिल से हया, न मुह पर शर्म-लिहाज़ है,
अपनों से रूठा-रूखा अब अपनों का मिजाज़ है,
इश्वर समझता है खुद को, जानता नहीं उसकी क्या औकात है,
फिर भी गर्व से कहता है इंसा अपनी तो क्या बात है!

अब आदमी खुद से प्यार करता है,
और खुद के हुनर पर मरता है,
उसे लगता है की वो दुनिया को उस खुदा की सौगात है,
इसलिए शायद गर्व से कहता है इंसा अपनी तो क्या बात है!

खुद को खुद में बदल कर देख बना खुद को इंसा,
तू प्यार का दीपक बाँट सभी को, न कर किसी से इर्षा,
फिर मिलेगा तुझे प्यार सबका,
होगा वो भी अपना जो तेरे लिए अज्ञात है,
फिर तो पूरा संसार तुझसे कहेगा वाह आपकी क्या बात है!!  

Thursday 21 March 2013

ज़िन्दगी...

ज़िन्दगी एक पहेली है,
ज़िन्दगी कभी दुःख का बाज़ार है,
तो कभी खुशियाँ अपरम्पार है।
ज़िन्दगी कभी खुशियों का समंदर है,
तो कभी दुखों का बवंडर है।
ये तो दुःख-सुख की सहेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।

ज़िन्दगी में कभी लहरों सा उछाल है,
तो कभी पर्वत सा ठहराव है।
ज़िन्दगी कभी सर्द हवा का झोका है,
तो कभी ज़िन्दगी आँखों का धोखा है।
ये कभी यादों की महफ़िल है,
तो कभी ये महफ़िल में भी अकेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।  

ज़िन्दगी कभी छुटपन की शरारत है,
तो कभी जवानी की शराफत है,
ये कभी बुढ़ापे की नजाकत है,
तो कभी इश्वर की इबादत है।
ज़िन्दगी बड़ी ही छैल-छाबेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।  

ज़िन्दगी कभी कलियों की नरमाहट है,
तो कभी शोलो सी गर्माहट है।
ये कभी सूरज जलाने की शक्ति है,
तो कभी गंगा की शीतल भक्ति है।
ज़िन्दगी कभी माँ का आँचल है,
तो कभी सूनेपन का आँगन है।
ज़िन्दगी कभी मरने की सज़ा है,
तो कभी जीने की वजह है।
ज़िन्दगी कैसे कैसे खेल खेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।

ज़िन्दगी जैसे सावन के झूले आये हों,
तो कभी जैसे पतझड़ में फूल मुरझाये हों।
ज़िन्दगी कभी सर्दी की पहली धुप है,
तो कभी रेगिस्तान सा बंजर रूप है।
ज़िन्दगी कभी बसंत में लहराती फसले  हैं,
तो कभी किसी शायर की अंतिम गज़लें हैं।
ये ज़िन्दगी बहुत अलबेली है।
ये ज़िन्दगी एक पहेली है।।    

Friday 8 March 2013

सर झुकता है सजदे में और यूँ कलम हो जाता है

सर झुकता है सजदे में और यूँ कलम हो जाता है,
चाकू की नोक पर कहीं राम, कहीं अल्लाह बिठाया जाता है।

कभी प्यार के चंद लफ़्ज़ों से तख्ते पलट गए,
वहीँ आज मशालो से प्यार जलाया जाता है।

कभी हर कदम में भारत दिखता था,
अब तो बस झंडो के रंग में भारत पाया जाता है।

कभी सोने की चिड़िया पर सफ़र करता था भारत,
अब तो हर शख्स इस चिड़िया के पंख कुतर जाता है।

जहाँ राम के बिना रमजान नहीं और अली के बिना न दिवाली,
वहां आज गोलियों से दिवाली मानती है, और खून से देश नहाता है।

कभी कबीर,नानक,मुहम्मद के अल्फाजों में खुदा दिखता था,
अब तो बस इश्वर नोटों की गड्डियों में छुप जाता है।

कहाँ गुलामी के बोझ तले भी सब हाथ थामे खड़े थे,
वहीँ आज दो कदम साथ चलने में आदमी लडखडा जाता है।  

कभी माँ के आँचल में स्वर्ग और पैरों में जन्नत होती थी,
आज उसी माँ को बुढ़ापे में दर-दर भटकने को छोड़ दिया जाता है।

देश की हालत पर रो पड़ेगा एक दिन खुदा भी,
और बन्दों से पूछेगा, की मेरी बनाई धरती माँ को खून से क्यों नेहलाता है।।   

Wednesday 6 March 2013

स्वर्ग में मोबाइल

अरे भई स्वर्ग में कमाल शुरू हो गया,
क्यूंकि अब स्वर्ग में मोबाइल का इस्तेमाल शुरू हो गया।

जब से स्वर्ग में लगा  मोबाइल कनेक्शन,
देवताओं ने चालू किया मोबाइल का सिलेक्शन।
अब तो देवता हर दम बतियाते हैं,
जिसकी वजह से सूरज देवता शाम की जगह रात को घर जाते हैं।

जब आता नहीं चाँद तो बच्चे सोचे की चंदा मामा क्यों रूठ गया?
अब उन्हें कौन समझाए की उन्हें अब आईडिया सूट हो गया।

लोग हैं परेशान, क्यों बरसा नहीं पानी?
अरे भई! क्योंकि इंद्र देव को भा गए अंबानी।

सब के पास है panasonic ,samsung, LG, nokia ,
हर स्वर्ग वासी बना मोबाइल का शौकिया।

मुम्बैया में बोले तो स्वर्ग की लग गई है वाट,
क्यूंकि अब सब के पास जो है hutch,reliance और smart. .

सारे देवता घंटो बतियाते हैं,
क्यूंकि वो फ़ोन का बिल जो नहीं चुकाते हैं।

सबसे पहले वायु देवता का नेटवर्क हुआ सेटल,
क्यूंकि वायु देवता ने नेटवर्क जो लिया है एयरटेल।

जल देवता ने बंद कर दिया बहना झरनों से,
नहीं तो उनका मोबाइल टूट जायेगा ज्यादा उप्पर से गिरने से।

अब सरे देवता प्रथ्वी की जल्द अपडेट पाते हैं,
क्यूंकि प्रथ्वी के उनके दूत उन्हें SMS के द्वारा सब बताते हैं।

चाहे जनता को स्वर्ग में मोबाइल कनेक्शन से जितनी परेशानी हो,
पर हम तो यही चाहते हैं की स्वर्ग में पहली मोबाइल दूकान हिंदुस्तानी हो।।             

Sunday 3 March 2013

देखा जब उसको मैं खोया इस कदर,
न मुझे अपनी न ज़माने की रही कुछ खबर,
सोचता हूँ की उसे देखा न करूँ,
मगर रूकती नहीं मेरी ये गुस्ताख नज़र।

उसके नैनों की गहराई में खोना चाहूँ ,
उसकी जुल्फों की परछाई में सोना चहुँ,
उसे मालूम है मैं करता हूँ उसे इश्क बेइन्तेहा,
मगर उसे नहीं मेरी कुछ फ़िकर.
ऐ मेरे अल्लाह मुझे यह बता
क्या यूँही एक दिन फट जायेगा ये जिगर?

संगेमरमर सा तराशा वो बदन,
आखों के नूर की बहती हुई वो शबनम,
यादों में उसकी रोया इतना,
की उसकी यादों में तडपेगी मेरी कबर।
 ऐ दिल-ए-नादां मुझे यह बता,
क्यों मीठा लगता है मुझे हर ज़हर?

चाँद ने नुमाइश में फैलाया है दामन अपना,
धरती के आँचल में अब पूरा होगा मेरा सपना,
आने वाला है मिलन का वो दिन मगर,
ए  फिज़ा मुझे ये बता,
कब होगी वो रंगीन सुहानी सेहर।। 

मेरे अंदर का शहर

हर बात पर कुछ कहता है,
मेरे अन्दर मेरा एक खुद का शहर रहता है,
कभी शोर होता है तो कभी गुप सन्नाटा है,
यहाँ प्यार और पाप का धर्म कांटा है।

कभी रोता है बिलख कर तो कभी हस-हस कर थक जाता है,
कभी खाली रहता है हर पन्ना तो कभी मस्त किस्सा पक्क जाता है।

कभी चिल्लाती है हर गली,
तो कभी हर गली सुनसान है,
कभी महफ़िल लगती है सबकी तो कभी सब एक दुसरे से अनजान हैं।

कभी यहाँ रात में भी उजाला है
तो कभी दिन भी अंधेरों से भरा है,
कभी पानी भी शहद लगता है,
तो कभी शहद का स्वाद भी खरा है.

कभी गर्मी की हवा सर्द लगती है,
तो कभी ठंड में आता पसीना है,
कभी एक दिल में कई दिल बसते हैं,
कभी बस ये खाली बंजर सीना है।

कभी उम्मीदों की लहर उठती है और कभी ठंडी पड़ जाती है,
कभी सपनो का करवा चलता है दिन भर,
कभी भरी रात में भी नींद खुल जाती हैं।

कभी प्यार की छीटों से शहर भीग जाता है,
तो कभी नफरत की आग जलाती है,
कभी ये शहर दुनिया  की राहों पर चलता है,
तो कभी ये शहर ये दुनिया चलाती है।

कभी ज़िन्दगी खूबसूरत है यहाँ पर,
तो कभी मौत भी यहाँ मरती है,
कभी ईशवर पर ही विशवास होता है,
तो कभी ईशवर से ही शिकायत करती है।


कभी इसी शहर में दिल मेरा बस्ता है,
तो कभी यहाँ ये भाग जाने को दिल करता है,
हर बात पर ये कहता है,
मेरे अन्दर मेरा खुद का शहर रहता है।  

मौत से मुलाकात

एक दिन मिली अंधेरों में मौत मुझे,
कहने लगी आज तो साथ लेके जाऊंगी तुझे,
चल आज मैं तुझे सारे  बंधनों से मुक्त करती हूँ,
और तुझे इस दिखावे की दुनिया से दूर ले चलती हूँ।

मैंने भी सोचा आज इसकी हर बात का जवाब दूंगा,
और आज कुछ ऐसा कहोंगा की मौत को भी जीना सिखा दूंगा।

बोली चल तुझे ले चलती हूँ ईशवर के पास,
जिसने ये जहां बनाया है,
मैंने कहा अनाथ तो तू है,
मैंने तो अपने माँ बाप में ही ईशवर पाया है।

बोली चल इस मतलबी दुनिया से दूर
जहाँ हर किसी के दिल में नफरत का बीज पलता है ,
मैंने कहा फिर तो तूने दुनिया देखि ही कहाँ है,
ज़रा मिल कर देख दोस्तों से मेरे,
जहाँ हर कोई हाथों में दिल लिए चलता है।

फिर कुछ चिड कर बोली, इस दुनिया में नहीं कहीं सच्चा प्यार है,
लालच और धोखे में ये दुनिया बर्बाद है,
मैंने कहा क्यूँ घमंड उस ईशवर की बनाई धरती पर करती है,
ये धरती आज इसी प्यार की वजह से आबाद है।

गुस्से में आखिर बोल पड़ी वो की दे दे अपनी जान,
इस दुनिया में नहीं किसी को सदा के लिए रहना,
मैं हँस कर बोल, एक बार जी के देख ले ये ज़िन्दगी ऐ मौत,
तेरे भी जान न निकल जाये तो कहना …  

Thursday 28 February 2013

मजबूर भारत

दूर कहीं जंगल  में एक छोटा गाँव बसता है,
जहाँ हर एक शक्श दिन रात यहाँ जगता है,
रोटी की महक से चहरे पर आ जाती है ख़ुशी, 
क्यूंकि कभी कभी किसी रोज़ ही यहाँ खाना पकता है।

भूख से रोता बच्चा जब जोर से बिलखता है 
तो कोने में बैठा उसका बाप दिल ही दिल तड़पता है, 
हालात से मजबूर औरत घर में बैठी सिसकती है 
पर आदमी यह सोचे की वो अपने घर के लिए क्या कर सकता है।

जो दिन भर में कमाता, वह प्रशासन खा जाता है,
घर की यह हालत देख कर आखों में पानी आ जाता है,
जब आसूँ  से भरी आँख लिए बच्चों को कुछ न दे पाए,
तो एसा व्यक्ति चोरी के अलावा और क्या कर सकता है,

एक तरफ तो हमारे देश में इमानदारी, सच्चाई और सरलता है,
वही दूसरी तरफ बुराई ,भ्रष्टाचार और कपटता है।
यह एस देश है जो बुराइयों में ही खुश रहता है,
ऐसे देश का विकास तो भगवान भी नहीं कर सकता है।।    

कौन हैं हम..??

एक सवाल सदियों से कुछ लोगों के मन में चला आता है,
की हर शख्स के द्वारा हमे इंसान क्यों कहा जाता है?
ये सवाल मेरे मन में भी दिन-रात चला आता है,
की कौन हैं हम..??

प्रकति का संतुलन बनाये रखने में हमारा क्या जाता है,
पेड़ लगाने से ज्यादा पेड़ काटने में मज़ा आता है,
पेड़ भी नहीं.. हमे इंसान कहा जाता है,
पर एक सवाल मेरे मन में फिर चला आता है,
की कौन हैं हम..??

हवा को हमारे द्वारा प्रदूषित किया जाता है,
हवा में कारखानों से धुआ छोड़ा जाता है,
जीवन देने वाली हवा को मरने की वजह बनाया जाता है,
इसे सोच कर फिर एक सवाल आता है 
की कौन हैं हम..??

पशुओ को जिस तरह सताया जाता है,
ये देख भगवान का भी दिल पसीज जाता है,
पशु नहीं हम क्योंकि हमारे द्वारा उन्हें परेशां किया जाता है,
यह परिवेश हमारे समक्ष एक विचार जगा  जाता है,
की कौन हैं हम..??

चलिए मने की हमे इंसान कहा जाता है,
तो ज़रा सोचिये की इंसानों को कौन सताता है?
क्यों इंसान को इंसान की जिंदिगी का फैसला करने का हक दिया जाता है?
यदि इंसान ही फैसले करेगा तो उसे भगवान  क्यों नहीं कहा जाता है?
यही सारी परिस्तिथिया एक बड़ा सवाल हमारे समक्ष खड़ा कर जाता है ...
की कौन हैं हम..??

अभी कुछ दिनों पहले की ये बात लगती है

अभी कुछ दिनों पहले की ये बात लगती है ,
कुछ अधूरे से दिन और अधूरी ये रात लगती है,
कुछ भी न बाकि है अब कहने सुनने को,
फिर भी किसी नए किस्से की शुरुवात लगती है।

ये बेजुबान लम्हे भी कुछ कहना चाहते हैं,
तेरे मेरे बीच कुछ देर रहना चाहते हैं,
उम्र बिता दी है साथ तेरे मैंने,
फिर भी बहुत छोटी ये मुलाकात लगती है।

उन नन्ही सी कलियों का खिलना बाकि है,
वो भटकते परिंदों का मिलना बाकि है,
ये आसमा भी मिल गया है झुक कर इस सागर में,
ये इस कायनात की हमारे लिए सौगात लगती है।

मैंने ऑस की बूदों को जलते देखा है,
और सूरज की आँखों में आसुओं को देखा है,
ये पलके जैसे गुलाब की चादर बिछाये बैठी हैं,
ये तुझसे मिलने को बहुत बेताब लगती हैं।

कहानियां इश्क आशिकी की खूब सुनी हैं हमने,
सपनो में फरिश्तों की कहानियां बुनी हैं हमने,
चार क़दमों का ये सफ़र जेसे परियों का शहर लगता है,
ये सब हम पर लिखी हसीं किताब लगती हैं।।

अभी कुछ दिनों पहले की ये बात लगती है ....

Wednesday 27 February 2013

#1

मेरे भी कुछ ख्याब हैं जो  मैंने तकिये के सिरहाने रक्खे हैं,
उन ख्वाबों के अंगारे इस दिल में सुलगा रक्खे हैं ,
मैं जनता हूँ ऩा फूलों सा सफ़र होगा मंजिल का,
उस मंजिल की तयारी में मैंने पैर झुलसा रखे हें