Saturday, 13 December 2014

मैं आतंकवाद से नहीं डरता

आज मैं भरी महफ़िल में ये एलान करता हूँ,
की मैं इस कायर आतंकवाद से नहीं डरता हूँ। 
मैं ही इनके हमले में तिल-तिल के मरता हूँ,
फिर भी यूँ बिखर कर मैं हर बार संभालता हूँ,
ये आतंकी फैलाते दहशत हज़ारों में,
ये आतंकी फोड़ते बम बाज़ारों में,
फिर भी मैं निडर होकर इस बाज़ारों से गुज़रता हूँ।।



ये कायर हैं करते हैं छुपकर वार,
हर बार लाल करते हैं ये मौत की तलवार,
मैं अब भी ज़िंदा हूँ दिल से,
क्या हुआ  जो मैं इस तलवार से हर बार मरता हूँ।  

अरे आतंकियों मेरा ये एलान सुन लो,
अपने छुपने के लिए अलग गली, अलग मकान चुन लो,
क्यूंकि अब भी मैं हर गली में तेरी मौत बन कर विश्वास से फिरता हुँ। 

मैं कोई एक आदमी नही, इस देश की जनता हूँ,
मैं ही विश्वास की बूंदो को मिलकर एक लहर बनाता हूँ,
हैं अगर हिम्मत तो आके भीड़ सामने से फिर देख मैं तेरा क्या हश्र करता हूँ। 

है नहीं मेरे देश की कमज़ोर नीव इतनी,
करले मेहनत हमे बांटने की तू जितनी,
मैं इंसान हूँ, बस इंसानियत का सम्मान करता हूँ,

है निकल रही जोश से हर आदमी की आवाज़ ये,
तय हो गया है तेरे अंत का अब आगाज़ ये,
ये दिल के कायर आतंकवाद, मैं बहादुर हूँ, तेरे वारो से नहीं डरता हूँ।
मैं फिर तुझे बता दूँ, मैं आतंकवाद से नहीं।।