Friday, 31 January 2014

याद

कब से मिला नहीं हूँ तुझसे,
कब से यूँ ही बैठा हूँ,
कब से यादों में है तू मेरी,
कब से यादों से ये कहता हूँ,

क्या तुझे पता है दिल का मेरे हाल?
क्या तू भी रातों को करती है मेरा ख्याल?
क्या मुझे याद करके तेरी भी आखें नम हो जाती हैं?
तेरी परछाई कुछ कहती नहीं मुझसे,
बस शर्मा के गुम हो जाती है।

तेरी यादों का पीछा करता रहता हूँ मैं सदा,
हर कदम पर मुझे याद आती तेरी हर अदा ,
कब से तेरे साये का पीछा कर अब कितना दूर आ गया हूँ,
क्या बताऊँ तुझे हाल दिल का, मैं तो हसने की अदा भी भूल गया हूँ।

लोग कहते हैं तेरे जैसे आशिक प्यार नहीं पाते,
मेरी उम्मीद तोड़ कर कहते टूटी शाखों पे फूल नहीं आते।
ज़िन्दगी बेकार उनकी जो प्यार बिना जीते हैं,
मैं सुनता नही हूँ बात उनकी, वो घर जला कर शराब हैं।। 

Thursday, 30 January 2014

लिखता रहूँगा

एक ग़ज़ल लिखता हूँ, लिखता रहूँगा,
यूँ ही इन अक्षरों में दिखता हूँ, दिखता रहूँगा।

जाने किस जगह वो गाँव है,
रेत पर भी बिखरी ठंडी छाँव है,
माँ कि बनाई चप्पले हैं पाँव में,
फिर भी न जाने इन में क्यूँ घाव है।
भाप बन कर उड़ गई है  नमी आँखों कि,
यूँ धुप में सिकता हूँ, सिकता रहूँगा।।

 कुछ उम्मीदें बटोरने निकला था,
थोडा ही सही मगर प्यार बटोरने निकला था,
भटकता ही रह गया इन बाज़ारों में मैं तो,
जब थोड़ी आंस खरीदने निकला था।
इन चीज़ों कि तलाश में मैं खुद ही बिक गया,
इन बाज़ारों में  मैं रोज़ बिकता हूँ, बिकता रहूँगा।।

हर घूंघट की छोर में मैंने खुद को देखा,
हर रोज़ इस भोर में मैंने खुद को देखा,
वो रकीब मेरे होने पर शक़ करता है,
पर वीरानियों के शोर में भी मैंने खुद को देखा,
असीम रूपों में मैंने खुद को पाया है,
तू आँख कर बंद , मैं दिखता हूँ, दिखता रहूँगा।।

एक ग़ज़ल लिखता हूँ, लिखता रहूँगा।।