कब से मिला नहीं हूँ तुझसे,
कब से यूँ ही बैठा हूँ,
कब से यादों में है तू मेरी,
कब से यादों से ये कहता हूँ,
क्या तुझे पता है दिल का मेरे हाल?
क्या तू भी रातों को करती है मेरा ख्याल?
क्या मुझे याद करके तेरी भी आखें नम हो जाती हैं?
तेरी परछाई कुछ कहती नहीं मुझसे,
बस शर्मा के गुम हो जाती है।
तेरी यादों का पीछा करता रहता हूँ मैं सदा,
हर कदम पर मुझे याद आती तेरी हर अदा ,
कब से तेरे साये का पीछा कर अब कितना दूर आ गया हूँ,
क्या बताऊँ तुझे हाल दिल का, मैं तो हसने की अदा भी भूल गया हूँ।
लोग कहते हैं तेरे जैसे आशिक प्यार नहीं पाते,
मेरी उम्मीद तोड़ कर कहते टूटी शाखों पे फूल नहीं आते।
ज़िन्दगी बेकार उनकी जो प्यार बिना जीते हैं,
मैं सुनता नही हूँ बात उनकी, वो घर जला कर शराब हैं।।
कब से यूँ ही बैठा हूँ,
कब से यादों में है तू मेरी,
कब से यादों से ये कहता हूँ,
क्या तुझे पता है दिल का मेरे हाल?
क्या तू भी रातों को करती है मेरा ख्याल?
क्या मुझे याद करके तेरी भी आखें नम हो जाती हैं?
तेरी परछाई कुछ कहती नहीं मुझसे,
बस शर्मा के गुम हो जाती है।
तेरी यादों का पीछा करता रहता हूँ मैं सदा,
हर कदम पर मुझे याद आती तेरी हर अदा ,
कब से तेरे साये का पीछा कर अब कितना दूर आ गया हूँ,
क्या बताऊँ तुझे हाल दिल का, मैं तो हसने की अदा भी भूल गया हूँ।
लोग कहते हैं तेरे जैसे आशिक प्यार नहीं पाते,
मेरी उम्मीद तोड़ कर कहते टूटी शाखों पे फूल नहीं आते।
ज़िन्दगी बेकार उनकी जो प्यार बिना जीते हैं,
मैं सुनता नही हूँ बात उनकी, वो घर जला कर शराब हैं।।