Sunday 16 August 2015

अभी कुछ दिनों पहले की ये बात लगती है

अभी कुछ दिनों पहले की ये बात लगती है,
कुछ अधूरे से दिन और अधूरी सी ये रात लगती है
कुछ भी ना बाकी है अब कहने सुनने को,
फिर भी किसी नए किस्से की शुरुवात लगती है।। 

ये बेज़ुबां लम्हे भी कुछ कहना चाहते हैं,
तेरे मेरे बीच कुछ देर रहना चाहते हैं,
उम्र बिता दी है साथ तेरे मैंने,
फिर भी बहुत छोटी यह मुलाकात लगती है।।

उन नन्ही सी कलियों का खिलना बाकी है,
वो भटकते परिंदों का मिलना बाकी है,
यह आस्मां भी मिल गया है झुक कर इस सागर में,
यह इस कायमनात की हमारे लिए सौगात लगती है।। 

मैंने ओस की बूंदों  को जलते देखा है,
और सूरज की आँखों में आंसू को देखा है,
यह पलके जैसे गुलाब की चादर बिछाये बैठी हैं,
यह तुझसे मिलने को बहुत बेताब लगती हैं।।

कहानियां इश्क़-आशिक़ी के खूब सुनी हैं हमने,
सपनो में फरिश्तों की कहानियां बुनी है हमने,
चार कदमों  का यह सफर जैसे परियों का शहर लगता है,
यह सब हम पर लिखी हसीं किताब लगती है।।

अभी कुछ दिनों पहले की ये बात लगती है...


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