एक सवाल सदियों से कुछ लोगों के मन में चला आता है,
की हर शख्स के द्वारा हमे इंसान क्यों कहा जाता है?
ये सवाल मेरे मन में भी दिन-रात चला आता है,
की कौन हैं हम..??
प्रकति का संतुलन बनाये रखने में हमारा क्या जाता है,
पेड़ लगाने से ज्यादा पेड़ काटने में मज़ा आता है,
पेड़ भी नहीं.. हमे इंसान कहा जाता है,
पर एक सवाल मेरे मन में फिर चला आता है,
की कौन हैं हम..??
हवा को हमारे द्वारा प्रदूषित किया जाता है,
हवा में कारखानों से धुआ छोड़ा जाता है,
जीवन देने वाली हवा को मरने की वजह बनाया जाता है,
इसे सोच कर फिर एक सवाल आता है
की कौन हैं हम..??
पशुओ को जिस तरह सताया जाता है,
ये देख भगवान का भी दिल पसीज जाता है,
पशु नहीं हम क्योंकि हमारे द्वारा उन्हें परेशां किया जाता है,
यह परिवेश हमारे समक्ष एक विचार जगा जाता है,
की कौन हैं हम..??
चलिए मने की हमे इंसान कहा जाता है,
तो ज़रा सोचिये की इंसानों को कौन सताता है?
क्यों इंसान को इंसान की जिंदिगी का फैसला करने का हक दिया जाता है?
यदि इंसान ही फैसले करेगा तो उसे भगवान क्यों नहीं कहा जाता है?
यही सारी परिस्तिथिया एक बड़ा सवाल हमारे समक्ष खड़ा कर जाता है ...
की कौन हैं हम..??
ye mere phli poem hai jo maine kai saal phle likhi thi...
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