#1
मेरे भी कुछ ख्याब हैं जो मैंने तकिये के सिरहाने रक्खे हैं,
उन ख्वाबों के अंगारे इस दिल में सुलगा रक्खे हैं ,
मैं जनता हूँ ऩा फूलों सा सफ़र होगा मंजिल का,
उस मंजिल की तयारी में मैंने पैर झुलसा रखे हें
मेरे भी कुछ ख्याब हैं जो मैंने तकिये के सिरहाने रक्खे हैं,
उन ख्वाबों के अंगारे इस दिल में सुलगा रक्खे हैं ,
मैं जनता हूँ ऩा फूलों सा सफ़र होगा मंजिल का,
उस मंजिल की तयारी में मैंने पैर झुलसा रखे हें
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