Wednesday, 27 February 2013

#1

मेरे भी कुछ ख्याब हैं जो  मैंने तकिये के सिरहाने रक्खे हैं,
उन ख्वाबों के अंगारे इस दिल में सुलगा रक्खे हैं ,
मैं जनता हूँ ऩा फूलों सा सफ़र होगा मंजिल का,
उस मंजिल की तयारी में मैंने पैर झुलसा रखे हें 

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