Thursday, 28 February 2013

मजबूर भारत

दूर कहीं जंगल  में एक छोटा गाँव बसता है,
जहाँ हर एक शक्श दिन रात यहाँ जगता है,
रोटी की महक से चहरे पर आ जाती है ख़ुशी, 
क्यूंकि कभी कभी किसी रोज़ ही यहाँ खाना पकता है।

भूख से रोता बच्चा जब जोर से बिलखता है 
तो कोने में बैठा उसका बाप दिल ही दिल तड़पता है, 
हालात से मजबूर औरत घर में बैठी सिसकती है 
पर आदमी यह सोचे की वो अपने घर के लिए क्या कर सकता है।

जो दिन भर में कमाता, वह प्रशासन खा जाता है,
घर की यह हालत देख कर आखों में पानी आ जाता है,
जब आसूँ  से भरी आँख लिए बच्चों को कुछ न दे पाए,
तो एसा व्यक्ति चोरी के अलावा और क्या कर सकता है,

एक तरफ तो हमारे देश में इमानदारी, सच्चाई और सरलता है,
वही दूसरी तरफ बुराई ,भ्रष्टाचार और कपटता है।
यह एस देश है जो बुराइयों में ही खुश रहता है,
ऐसे देश का विकास तो भगवान भी नहीं कर सकता है।।    

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