Sunday, 3 March 2013

मौत से मुलाकात

एक दिन मिली अंधेरों में मौत मुझे,
कहने लगी आज तो साथ लेके जाऊंगी तुझे,
चल आज मैं तुझे सारे  बंधनों से मुक्त करती हूँ,
और तुझे इस दिखावे की दुनिया से दूर ले चलती हूँ।

मैंने भी सोचा आज इसकी हर बात का जवाब दूंगा,
और आज कुछ ऐसा कहोंगा की मौत को भी जीना सिखा दूंगा।

बोली चल तुझे ले चलती हूँ ईशवर के पास,
जिसने ये जहां बनाया है,
मैंने कहा अनाथ तो तू है,
मैंने तो अपने माँ बाप में ही ईशवर पाया है।

बोली चल इस मतलबी दुनिया से दूर
जहाँ हर किसी के दिल में नफरत का बीज पलता है ,
मैंने कहा फिर तो तूने दुनिया देखि ही कहाँ है,
ज़रा मिल कर देख दोस्तों से मेरे,
जहाँ हर कोई हाथों में दिल लिए चलता है।

फिर कुछ चिड कर बोली, इस दुनिया में नहीं कहीं सच्चा प्यार है,
लालच और धोखे में ये दुनिया बर्बाद है,
मैंने कहा क्यूँ घमंड उस ईशवर की बनाई धरती पर करती है,
ये धरती आज इसी प्यार की वजह से आबाद है।

गुस्से में आखिर बोल पड़ी वो की दे दे अपनी जान,
इस दुनिया में नहीं किसी को सदा के लिए रहना,
मैं हँस कर बोल, एक बार जी के देख ले ये ज़िन्दगी ऐ मौत,
तेरे भी जान न निकल जाये तो कहना …  

1 comment:

  1. sahi hai yr agar sab aisehi lie jeeney lagey toh log mar mar ke jeena chod dengey....

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