Friday, 8 March 2013

सर झुकता है सजदे में और यूँ कलम हो जाता है

सर झुकता है सजदे में और यूँ कलम हो जाता है,
चाकू की नोक पर कहीं राम, कहीं अल्लाह बिठाया जाता है।

कभी प्यार के चंद लफ़्ज़ों से तख्ते पलट गए,
वहीँ आज मशालो से प्यार जलाया जाता है।

कभी हर कदम में भारत दिखता था,
अब तो बस झंडो के रंग में भारत पाया जाता है।

कभी सोने की चिड़िया पर सफ़र करता था भारत,
अब तो हर शख्स इस चिड़िया के पंख कुतर जाता है।

जहाँ राम के बिना रमजान नहीं और अली के बिना न दिवाली,
वहां आज गोलियों से दिवाली मानती है, और खून से देश नहाता है।

कभी कबीर,नानक,मुहम्मद के अल्फाजों में खुदा दिखता था,
अब तो बस इश्वर नोटों की गड्डियों में छुप जाता है।

कहाँ गुलामी के बोझ तले भी सब हाथ थामे खड़े थे,
वहीँ आज दो कदम साथ चलने में आदमी लडखडा जाता है।  

कभी माँ के आँचल में स्वर्ग और पैरों में जन्नत होती थी,
आज उसी माँ को बुढ़ापे में दर-दर भटकने को छोड़ दिया जाता है।

देश की हालत पर रो पड़ेगा एक दिन खुदा भी,
और बन्दों से पूछेगा, की मेरी बनाई धरती माँ को खून से क्यों नेहलाता है।।   

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