Sunday, 3 March 2013

देखा जब उसको मैं खोया इस कदर,
न मुझे अपनी न ज़माने की रही कुछ खबर,
सोचता हूँ की उसे देखा न करूँ,
मगर रूकती नहीं मेरी ये गुस्ताख नज़र।

उसके नैनों की गहराई में खोना चाहूँ ,
उसकी जुल्फों की परछाई में सोना चहुँ,
उसे मालूम है मैं करता हूँ उसे इश्क बेइन्तेहा,
मगर उसे नहीं मेरी कुछ फ़िकर.
ऐ मेरे अल्लाह मुझे यह बता
क्या यूँही एक दिन फट जायेगा ये जिगर?

संगेमरमर सा तराशा वो बदन,
आखों के नूर की बहती हुई वो शबनम,
यादों में उसकी रोया इतना,
की उसकी यादों में तडपेगी मेरी कबर।
 ऐ दिल-ए-नादां मुझे यह बता,
क्यों मीठा लगता है मुझे हर ज़हर?

चाँद ने नुमाइश में फैलाया है दामन अपना,
धरती के आँचल में अब पूरा होगा मेरा सपना,
आने वाला है मिलन का वो दिन मगर,
ए  फिज़ा मुझे ये बता,
कब होगी वो रंगीन सुहानी सेहर।। 

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