ज़िन्दगी एक पहेली है,
ज़िन्दगी कभी दुःख का बाज़ार है,
तो कभी खुशियाँ अपरम्पार है।
ज़िन्दगी कभी खुशियों का समंदर है,
तो कभी दुखों का बवंडर है।
ये तो दुःख-सुख की सहेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।
ज़िन्दगी में कभी लहरों सा उछाल है,
तो कभी पर्वत सा ठहराव है।
ज़िन्दगी कभी सर्द हवा का झोका है,
तो कभी ज़िन्दगी आँखों का धोखा है।
ये कभी यादों की महफ़िल है,
तो कभी ये महफ़िल में भी अकेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।
ज़िन्दगी कभी छुटपन की शरारत है,
तो कभी जवानी की शराफत है,
ये कभी बुढ़ापे की नजाकत है,
तो कभी इश्वर की इबादत है।
ज़िन्दगी बड़ी ही छैल-छाबेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।
ज़िन्दगी कभी कलियों की नरमाहट है,
तो कभी शोलो सी गर्माहट है।
ये कभी सूरज जलाने की शक्ति है,
तो कभी गंगा की शीतल भक्ति है।
ज़िन्दगी कभी माँ का आँचल है,
तो कभी सूनेपन का आँगन है।
ज़िन्दगी कभी मरने की सज़ा है,
तो कभी जीने की वजह है।
ज़िन्दगी कैसे कैसे खेल खेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।
ज़िन्दगी जैसे सावन के झूले आये हों,
तो कभी जैसे पतझड़ में फूल मुरझाये हों।
ज़िन्दगी कभी सर्दी की पहली धुप है,
तो कभी रेगिस्तान सा बंजर रूप है।
ज़िन्दगी कभी बसंत में लहराती फसले हैं,
तो कभी किसी शायर की अंतिम गज़लें हैं।
ये ज़िन्दगी बहुत अलबेली है।
ये ज़िन्दगी एक पहेली है।।
ज़िन्दगी कभी दुःख का बाज़ार है,
तो कभी खुशियाँ अपरम्पार है।
ज़िन्दगी कभी खुशियों का समंदर है,
तो कभी दुखों का बवंडर है।
ये तो दुःख-सुख की सहेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।
ज़िन्दगी में कभी लहरों सा उछाल है,
तो कभी पर्वत सा ठहराव है।
ज़िन्दगी कभी सर्द हवा का झोका है,
तो कभी ज़िन्दगी आँखों का धोखा है।
ये कभी यादों की महफ़िल है,
तो कभी ये महफ़िल में भी अकेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।
ज़िन्दगी कभी छुटपन की शरारत है,
तो कभी जवानी की शराफत है,
ये कभी बुढ़ापे की नजाकत है,
तो कभी इश्वर की इबादत है।
ज़िन्दगी बड़ी ही छैल-छाबेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।
ज़िन्दगी कभी कलियों की नरमाहट है,
तो कभी शोलो सी गर्माहट है।
ये कभी सूरज जलाने की शक्ति है,
तो कभी गंगा की शीतल भक्ति है।
ज़िन्दगी कभी माँ का आँचल है,
तो कभी सूनेपन का आँगन है।
ज़िन्दगी कभी मरने की सज़ा है,
तो कभी जीने की वजह है।
ज़िन्दगी कैसे कैसे खेल खेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।
ज़िन्दगी जैसे सावन के झूले आये हों,
तो कभी जैसे पतझड़ में फूल मुरझाये हों।
ज़िन्दगी कभी सर्दी की पहली धुप है,
तो कभी रेगिस्तान सा बंजर रूप है।
ज़िन्दगी कभी बसंत में लहराती फसले हैं,
तो कभी किसी शायर की अंतिम गज़लें हैं।
ये ज़िन्दगी बहुत अलबेली है।
ये ज़िन्दगी एक पहेली है।।
Very touching..:)
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