Monday 25 March 2013

कुछ लिख रहा हूँ ...

टूटे हुए दिल के फ़साने लिख रहा हूँ,
जो गा न पाया कभी वो तराने लिख रहा हूँ,
बगैर प्यार के भी सदियाँ बिताई हैं हमने,
कैसे बीते वो ज़माने लिख रहा हूँ।

कुछ मशहूर किस्से हैं आशिकी के,
मगर हमारी तो बस छोटी सी कहानी है,
याद रखे हमारे बाद भी लोग हमें,
बस इसलिए अपने भी कुछ अफ़साने लिख रहा हूँ।।

वो हम पर जां निसार करते थे,
वो हम से बेंतेहान प्यार करते थे,
बस उनकी दौलत-ए-इश्क सम्भाल रक्खी है हमने,
और कहाँ छुपाए हैं जो खज़ाने लिख रहा हूँ।।

खुशियों में शामिल जहाँ था हमारे,
गैर प्यारे बन गए थे हमारे,
मगर गुमों ने सबके मुखोंते खोल दिए,
और अपने कौन निकले बेगाने लिख रहा हूँ।।

कुछ लफ़्ज़ों को ग़ज़ल कहा था हमने,
चंद पत्थरों को ताजमहल कहा था हमने,
जहाँ बैठ कर साथ वक़्त गुज़ारा था हमने,
कैसे हुए वीरां वो ठिकाने लिख रहा हूँ।।       

1 comment: