सुनो दुनिया वालों, मैं भारत की तरफ से हॉकी खेलता हूँ,
अब क्या-क्या बताऊँ इस देश में मैं क्या-२ झेलता हूँ।
यहाँ जाने क्यूँ राष्ट्रीय खेल का सम्मान नहीं होता,
यहाँ देश के खिलाडियों के पास खेलने को सामान नहीं होता।
अनजान सी ज़िन्दगी जीने को हम मजबूर होते हैं,
और यहाँ बस गेंद बल्ला पकड़ने वाले मशहूर होते हैं।
इस देश में अंजानो के हाथ खेल की सत्ता चलाई जाती है,
और भूखे खिलाडियों के चूल्हों में Hockey जलाई जाती है।
कहीं हार की कमाई भी हमारी जीत से ज्यादा है,
न जाने क्या खेल है ये, जहाँ राजा भी बना प्यादा है।
यहाँ तो गेंदों से गलियों में कॉच फूटते हैं,
और हॉकी के मैदानों में खिलाडियों के ख्वाब टूटते हैं।
एक सुनेहेरा सा ख्वाब था ध्यानचंद का वो ज़माना,
मुझे गर्व है इस खेल पर और मेरा फ़र्ज़ है इसे आगे बढ़ाना।
दस साल देश के लिए खेलने पर भी मुझे कोई नहीं जानता है,
और मेरा बेटा आज भी मुझसे किसी cricketer का autograph मांगता है।।
अब क्या-क्या बताऊँ इस देश में मैं क्या-२ झेलता हूँ।
यहाँ जाने क्यूँ राष्ट्रीय खेल का सम्मान नहीं होता,
यहाँ देश के खिलाडियों के पास खेलने को सामान नहीं होता।
अनजान सी ज़िन्दगी जीने को हम मजबूर होते हैं,
और यहाँ बस गेंद बल्ला पकड़ने वाले मशहूर होते हैं।
इस देश में अंजानो के हाथ खेल की सत्ता चलाई जाती है,
और भूखे खिलाडियों के चूल्हों में Hockey जलाई जाती है।
कहीं हार की कमाई भी हमारी जीत से ज्यादा है,
न जाने क्या खेल है ये, जहाँ राजा भी बना प्यादा है।
यहाँ तो गेंदों से गलियों में कॉच फूटते हैं,
और हॉकी के मैदानों में खिलाडियों के ख्वाब टूटते हैं।
एक सुनेहेरा सा ख्वाब था ध्यानचंद का वो ज़माना,
मुझे गर्व है इस खेल पर और मेरा फ़र्ज़ है इसे आगे बढ़ाना।
दस साल देश के लिए खेलने पर भी मुझे कोई नहीं जानता है,
और मेरा बेटा आज भी मुझसे किसी cricketer का autograph मांगता है।।
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