आज फिर उड़ने को जी करता है,
राहों में यूँ पीछे जाने को जी करता है।
मेरे हिस्से का निवाला तेरी दावत नहीं,
यूँ फड-फाड़ा के जीना मेरी आदत नहीं।
दिल का परिंदा ये गगन चूमना चाहता है,
हाथ पकड़ घटाओं का ये आसमा घूमना चाहता है।
तोड़ कर पिंजरों को ये पंख झटकना चाहता है,
अनजान राहों पर ये फिर भटकना चाहता है।
ये पर्वत, ये नदिया मुझे बुलाते हैं,
और रात की चादर में मुझे तारे सुलाते हैं।
आज़ादी भी सच में चीज़ बड़ी निराली है,
तुझसे मांगी नहीं, मैंने आज ये कमा ली है।
हाथ फैलाये स्वागत मेरा नया जहाँ करता है,
बेफिक्र-बेपरवा थोडा और उड़ने को जी करता है।।
bht bht hi pyaari poem..:)
ReplyDeleteLovely beta. Keep it up
ReplyDeletethank u didi :)
Deleteआज़ादी भी सच में चीज़ बड़ी निराली है,
ReplyDeleteतुझसे मांगी नहीं, मैंने आज ये कमा ली है।
Bahut badiya... sundar rachna....
azadi sach me janne se milti hai, azadi koi kisi ko de nahi sakta.