एक दिन निकला मैं अनजान सी राहों में,
लेने किसी को अपनी आहों में, मगर
अब चलते-चलते बहुत दूर निकल आया हूँ
और अब भूल चूका हूँ की शुरुवात कहाँ से की थी।
उसकी आवाज़ की खनक को सुर मान के,
उसके चहरे की चमक को सूरज मान के,
बस वो सूरज पकड़ने निकल पड़ा हूँ,
मगर अब भूल चूका हूँ की शुरुवात कहाँ से की थी।
शुक्र है खुदा की रस्ते में वो मिली,
बिना कुछ कहे बस साथ में चली,
मैं भी बस साथ उसके चलता रहा,
क्यूंकि मैं भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।
रास्ते में मुझे सबने रुका,
हवायों ने रुका ,मंजिलों ने तो दे दिया धोका
मगर मैं उसे देखकर बस चलता रहा,
क्यूंकि मैं तो भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।
बस उसी को मैंने दिल दिया
उसके हर दर्द को दिल से जिया
शायद ये दर्द सहना मेरी रज़ा थी
मगर लोग बोले पागल ये तो तेरी सज़ा थी,
सुनाई ही नहीं दी मुझे औरों की बातें
क्यूंकि मेरे कानो में सिर्फ उसकी सदा थी,
अब भी बस साथ उसके चलता रहा
क्यूंकि मैं भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।
एक दिन मैंने उससे कहा मेरा हाथ थाम लो, राहें आसान हो जाएँगी,
एक दिन हम पर भी ये किस्मत मेहरबान हो जाएगी,
वो बोली मैं ज़रूर चलती साथ तुम्हारे मगर ये राहें बहुत मुश्किल हैं,
दुनिया की रस्मे और कसमे इसमें शामिल हैं,
मैने उसे देखा और मुस्कुरा दिया,
क्यूंकि मैं भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।
वो मुझसे बोली तुम भी वापस लौट जाओ अपनी राहों में,
और खुश रहो अपनी खुशनुमा अदाओं से,
ये सुन कर मैं शायद उसी पल लौट जाता,
मगर मैं तो भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।
आज खुश हूँ के साथ उसका प्यार है,
इकरार न सही कम से कम न साथ इनकार है,
यूँ ही मीलों चल सकता हूँ उसे देखते हुए
प्यार के मोती उसकी राहों में फ़ेकते हुए,
कुछ नंगे पाँव चले के निशान देखकर भी अब आपस न जाऊँगा ,
क्यूंकि अगर वो साथ है तो मैं याद करना भी नहीं चाहोंगा,
की मैंने शुरुवात कहाँ से की थी।।
लेने किसी को अपनी आहों में, मगर
अब चलते-चलते बहुत दूर निकल आया हूँ
और अब भूल चूका हूँ की शुरुवात कहाँ से की थी।
उसकी आवाज़ की खनक को सुर मान के,
उसके चहरे की चमक को सूरज मान के,
बस वो सूरज पकड़ने निकल पड़ा हूँ,
मगर अब भूल चूका हूँ की शुरुवात कहाँ से की थी।
शुक्र है खुदा की रस्ते में वो मिली,
बिना कुछ कहे बस साथ में चली,
मैं भी बस साथ उसके चलता रहा,
क्यूंकि मैं भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।
रास्ते में मुझे सबने रुका,
हवायों ने रुका ,मंजिलों ने तो दे दिया धोका
मगर मैं उसे देखकर बस चलता रहा,
क्यूंकि मैं तो भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।
बस उसी को मैंने दिल दिया
उसके हर दर्द को दिल से जिया
शायद ये दर्द सहना मेरी रज़ा थी
मगर लोग बोले पागल ये तो तेरी सज़ा थी,
सुनाई ही नहीं दी मुझे औरों की बातें
क्यूंकि मेरे कानो में सिर्फ उसकी सदा थी,
अब भी बस साथ उसके चलता रहा
क्यूंकि मैं भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।
एक दिन मैंने उससे कहा मेरा हाथ थाम लो, राहें आसान हो जाएँगी,
एक दिन हम पर भी ये किस्मत मेहरबान हो जाएगी,
वो बोली मैं ज़रूर चलती साथ तुम्हारे मगर ये राहें बहुत मुश्किल हैं,
दुनिया की रस्मे और कसमे इसमें शामिल हैं,
मैने उसे देखा और मुस्कुरा दिया,
क्यूंकि मैं भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।
वो मुझसे बोली तुम भी वापस लौट जाओ अपनी राहों में,
और खुश रहो अपनी खुशनुमा अदाओं से,
ये सुन कर मैं शायद उसी पल लौट जाता,
मगर मैं तो भूल चूका था की शुरुवात कहाँ से की थी।
आज खुश हूँ के साथ उसका प्यार है,
इकरार न सही कम से कम न साथ इनकार है,
यूँ ही मीलों चल सकता हूँ उसे देखते हुए
प्यार के मोती उसकी राहों में फ़ेकते हुए,
कुछ नंगे पाँव चले के निशान देखकर भी अब आपस न जाऊँगा ,
क्यूंकि अगर वो साथ है तो मैं याद करना भी नहीं चाहोंगा,
की मैंने शुरुवात कहाँ से की थी।।
himanshu this poem is very close to my heart.. n very precious tooo...
ReplyDeletei juss love it...:-):-)
thank u sanju :) :D
DeleteSuper cool blog website.
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