Monday, 25 March 2013

कुछ लिख रहा हूँ ...

टूटे हुए दिल के फ़साने लिख रहा हूँ,
जो गा न पाया कभी वो तराने लिख रहा हूँ,
बगैर प्यार के भी सदियाँ बिताई हैं हमने,
कैसे बीते वो ज़माने लिख रहा हूँ।

कुछ मशहूर किस्से हैं आशिकी के,
मगर हमारी तो बस छोटी सी कहानी है,
याद रखे हमारे बाद भी लोग हमें,
बस इसलिए अपने भी कुछ अफ़साने लिख रहा हूँ।।

वो हम पर जां निसार करते थे,
वो हम से बेंतेहान प्यार करते थे,
बस उनकी दौलत-ए-इश्क सम्भाल रक्खी है हमने,
और कहाँ छुपाए हैं जो खज़ाने लिख रहा हूँ।।

खुशियों में शामिल जहाँ था हमारे,
गैर प्यारे बन गए थे हमारे,
मगर गुमों ने सबके मुखोंते खोल दिए,
और अपने कौन निकले बेगाने लिख रहा हूँ।।

कुछ लफ़्ज़ों को ग़ज़ल कहा था हमने,
चंद पत्थरों को ताजमहल कहा था हमने,
जहाँ बैठ कर साथ वक़्त गुज़ारा था हमने,
कैसे हुए वीरां वो ठिकाने लिख रहा हूँ।।       

Sunday, 24 March 2013

#3

कभी यूँ दर्द सेहना अच्छा लगता है,
किसी बेगाने को अपना कहना अच्छा लगता है,
यूँ तो आसूँ निकलते हैं आँखों से हर शाम,
कभी कबार इस आँसुओं के साथ बहना अच्छा लगता है।। 
#2

इस इश्क के कई चहरे होते हैं,
खुली आँखों में भी सौ पहेरे होते हैं।
इतना आसाँ नहीं इश्क का दरिया पार करना,
कई मरतबा  इसके किनारे भी बहुत गहरे होते हैं।।   

हॉकी (HOCKEY)

सुनो दुनिया वालों, मैं भारत की तरफ से हॉकी खेलता हूँ,
अब क्या-क्या बताऊँ इस देश में मैं क्या-२ झेलता हूँ।

यहाँ  जाने क्यूँ राष्ट्रीय खेल का सम्मान नहीं होता,
यहाँ देश के खिलाडियों के पास खेलने को सामान नहीं होता।

अनजान सी ज़िन्दगी जीने को हम मजबूर होते हैं,
और यहाँ बस गेंद बल्ला पकड़ने वाले मशहूर होते हैं।

इस देश में अंजानो के हाथ खेल की सत्ता चलाई जाती है,
और भूखे खिलाडियों के चूल्हों में Hockey जलाई जाती है।

कहीं हार की कमाई भी हमारी जीत से ज्यादा है,
न जाने क्या खेल है ये, जहाँ राजा भी बना प्यादा है।

यहाँ तो गेंदों से गलियों में कॉच फूटते हैं,
और हॉकी के मैदानों में खिलाडियों के ख्वाब टूटते हैं।

एक सुनेहेरा सा ख्वाब था ध्यानचंद का वो ज़माना,
मुझे गर्व है इस खेल पर और मेरा फ़र्ज़ है इसे आगे बढ़ाना।

दस साल देश के लिए खेलने पर भी मुझे कोई नहीं जानता है,
और मेरा बेटा आज भी मुझसे किसी cricketer का autograph  मांगता है।।      

Friday, 22 March 2013

वाह क्या बात है!

गम से उठता है सूरज, दुखों के संग डूब जाता है,
चंदा भी युहीं डर-डर के अब तो बाहर आता है,
ग़मों में जागती है सुबह, अब दुखों से भरी रात है,
फिर भी गर्व से कहता है इंसा अपनी तो क्या बात है!

लबों पर रहती है प्यास और भूख पेट में मरती है,
अपने लाल को घर से निकालने में अब हर माँ डरती है,
मौत से भी बुरी हो चुकी अब ज़िन्दगी की हालत है,
फिर भी गर्व से कहता है इंसा अपनी तो क्या बात है!

अब तो किसी के पीठ में किसी का खंजर रहता है,
अब लोगों के होंठों से लालच का थूक बहता है,
करते बुराई उसकी हैं,सामने कहते साथ-साथ हैं,
फिर भी गर्व से कहता है इंसा अपनी तो क्या बात है!

उड़ गई दिल से हया, न मुह पर शर्म-लिहाज़ है,
अपनों से रूठा-रूखा अब अपनों का मिजाज़ है,
इश्वर समझता है खुद को, जानता नहीं उसकी क्या औकात है,
फिर भी गर्व से कहता है इंसा अपनी तो क्या बात है!

अब आदमी खुद से प्यार करता है,
और खुद के हुनर पर मरता है,
उसे लगता है की वो दुनिया को उस खुदा की सौगात है,
इसलिए शायद गर्व से कहता है इंसा अपनी तो क्या बात है!

खुद को खुद में बदल कर देख बना खुद को इंसा,
तू प्यार का दीपक बाँट सभी को, न कर किसी से इर्षा,
फिर मिलेगा तुझे प्यार सबका,
होगा वो भी अपना जो तेरे लिए अज्ञात है,
फिर तो पूरा संसार तुझसे कहेगा वाह आपकी क्या बात है!!  

Thursday, 21 March 2013

ज़िन्दगी...

ज़िन्दगी एक पहेली है,
ज़िन्दगी कभी दुःख का बाज़ार है,
तो कभी खुशियाँ अपरम्पार है।
ज़िन्दगी कभी खुशियों का समंदर है,
तो कभी दुखों का बवंडर है।
ये तो दुःख-सुख की सहेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।

ज़िन्दगी में कभी लहरों सा उछाल है,
तो कभी पर्वत सा ठहराव है।
ज़िन्दगी कभी सर्द हवा का झोका है,
तो कभी ज़िन्दगी आँखों का धोखा है।
ये कभी यादों की महफ़िल है,
तो कभी ये महफ़िल में भी अकेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।  

ज़िन्दगी कभी छुटपन की शरारत है,
तो कभी जवानी की शराफत है,
ये कभी बुढ़ापे की नजाकत है,
तो कभी इश्वर की इबादत है।
ज़िन्दगी बड़ी ही छैल-छाबेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।  

ज़िन्दगी कभी कलियों की नरमाहट है,
तो कभी शोलो सी गर्माहट है।
ये कभी सूरज जलाने की शक्ति है,
तो कभी गंगा की शीतल भक्ति है।
ज़िन्दगी कभी माँ का आँचल है,
तो कभी सूनेपन का आँगन है।
ज़िन्दगी कभी मरने की सज़ा है,
तो कभी जीने की वजह है।
ज़िन्दगी कैसे कैसे खेल खेली है।
ज़िन्दगी एक पहेली है।।

ज़िन्दगी जैसे सावन के झूले आये हों,
तो कभी जैसे पतझड़ में फूल मुरझाये हों।
ज़िन्दगी कभी सर्दी की पहली धुप है,
तो कभी रेगिस्तान सा बंजर रूप है।
ज़िन्दगी कभी बसंत में लहराती फसले  हैं,
तो कभी किसी शायर की अंतिम गज़लें हैं।
ये ज़िन्दगी बहुत अलबेली है।
ये ज़िन्दगी एक पहेली है।।    

Friday, 8 March 2013

सर झुकता है सजदे में और यूँ कलम हो जाता है

सर झुकता है सजदे में और यूँ कलम हो जाता है,
चाकू की नोक पर कहीं राम, कहीं अल्लाह बिठाया जाता है।

कभी प्यार के चंद लफ़्ज़ों से तख्ते पलट गए,
वहीँ आज मशालो से प्यार जलाया जाता है।

कभी हर कदम में भारत दिखता था,
अब तो बस झंडो के रंग में भारत पाया जाता है।

कभी सोने की चिड़िया पर सफ़र करता था भारत,
अब तो हर शख्स इस चिड़िया के पंख कुतर जाता है।

जहाँ राम के बिना रमजान नहीं और अली के बिना न दिवाली,
वहां आज गोलियों से दिवाली मानती है, और खून से देश नहाता है।

कभी कबीर,नानक,मुहम्मद के अल्फाजों में खुदा दिखता था,
अब तो बस इश्वर नोटों की गड्डियों में छुप जाता है।

कहाँ गुलामी के बोझ तले भी सब हाथ थामे खड़े थे,
वहीँ आज दो कदम साथ चलने में आदमी लडखडा जाता है।  

कभी माँ के आँचल में स्वर्ग और पैरों में जन्नत होती थी,
आज उसी माँ को बुढ़ापे में दर-दर भटकने को छोड़ दिया जाता है।

देश की हालत पर रो पड़ेगा एक दिन खुदा भी,
और बन्दों से पूछेगा, की मेरी बनाई धरती माँ को खून से क्यों नेहलाता है।।   

Wednesday, 6 March 2013

स्वर्ग में मोबाइल

अरे भई स्वर्ग में कमाल शुरू हो गया,
क्यूंकि अब स्वर्ग में मोबाइल का इस्तेमाल शुरू हो गया।

जब से स्वर्ग में लगा  मोबाइल कनेक्शन,
देवताओं ने चालू किया मोबाइल का सिलेक्शन।
अब तो देवता हर दम बतियाते हैं,
जिसकी वजह से सूरज देवता शाम की जगह रात को घर जाते हैं।

जब आता नहीं चाँद तो बच्चे सोचे की चंदा मामा क्यों रूठ गया?
अब उन्हें कौन समझाए की उन्हें अब आईडिया सूट हो गया।

लोग हैं परेशान, क्यों बरसा नहीं पानी?
अरे भई! क्योंकि इंद्र देव को भा गए अंबानी।

सब के पास है panasonic ,samsung, LG, nokia ,
हर स्वर्ग वासी बना मोबाइल का शौकिया।

मुम्बैया में बोले तो स्वर्ग की लग गई है वाट,
क्यूंकि अब सब के पास जो है hutch,reliance और smart. .

सारे देवता घंटो बतियाते हैं,
क्यूंकि वो फ़ोन का बिल जो नहीं चुकाते हैं।

सबसे पहले वायु देवता का नेटवर्क हुआ सेटल,
क्यूंकि वायु देवता ने नेटवर्क जो लिया है एयरटेल।

जल देवता ने बंद कर दिया बहना झरनों से,
नहीं तो उनका मोबाइल टूट जायेगा ज्यादा उप्पर से गिरने से।

अब सरे देवता प्रथ्वी की जल्द अपडेट पाते हैं,
क्यूंकि प्रथ्वी के उनके दूत उन्हें SMS के द्वारा सब बताते हैं।

चाहे जनता को स्वर्ग में मोबाइल कनेक्शन से जितनी परेशानी हो,
पर हम तो यही चाहते हैं की स्वर्ग में पहली मोबाइल दूकान हिंदुस्तानी हो।।             

Sunday, 3 March 2013

देखा जब उसको मैं खोया इस कदर,
न मुझे अपनी न ज़माने की रही कुछ खबर,
सोचता हूँ की उसे देखा न करूँ,
मगर रूकती नहीं मेरी ये गुस्ताख नज़र।

उसके नैनों की गहराई में खोना चाहूँ ,
उसकी जुल्फों की परछाई में सोना चहुँ,
उसे मालूम है मैं करता हूँ उसे इश्क बेइन्तेहा,
मगर उसे नहीं मेरी कुछ फ़िकर.
ऐ मेरे अल्लाह मुझे यह बता
क्या यूँही एक दिन फट जायेगा ये जिगर?

संगेमरमर सा तराशा वो बदन,
आखों के नूर की बहती हुई वो शबनम,
यादों में उसकी रोया इतना,
की उसकी यादों में तडपेगी मेरी कबर।
 ऐ दिल-ए-नादां मुझे यह बता,
क्यों मीठा लगता है मुझे हर ज़हर?

चाँद ने नुमाइश में फैलाया है दामन अपना,
धरती के आँचल में अब पूरा होगा मेरा सपना,
आने वाला है मिलन का वो दिन मगर,
ए  फिज़ा मुझे ये बता,
कब होगी वो रंगीन सुहानी सेहर।। 

मेरे अंदर का शहर

हर बात पर कुछ कहता है,
मेरे अन्दर मेरा एक खुद का शहर रहता है,
कभी शोर होता है तो कभी गुप सन्नाटा है,
यहाँ प्यार और पाप का धर्म कांटा है।

कभी रोता है बिलख कर तो कभी हस-हस कर थक जाता है,
कभी खाली रहता है हर पन्ना तो कभी मस्त किस्सा पक्क जाता है।

कभी चिल्लाती है हर गली,
तो कभी हर गली सुनसान है,
कभी महफ़िल लगती है सबकी तो कभी सब एक दुसरे से अनजान हैं।

कभी यहाँ रात में भी उजाला है
तो कभी दिन भी अंधेरों से भरा है,
कभी पानी भी शहद लगता है,
तो कभी शहद का स्वाद भी खरा है.

कभी गर्मी की हवा सर्द लगती है,
तो कभी ठंड में आता पसीना है,
कभी एक दिल में कई दिल बसते हैं,
कभी बस ये खाली बंजर सीना है।

कभी उम्मीदों की लहर उठती है और कभी ठंडी पड़ जाती है,
कभी सपनो का करवा चलता है दिन भर,
कभी भरी रात में भी नींद खुल जाती हैं।

कभी प्यार की छीटों से शहर भीग जाता है,
तो कभी नफरत की आग जलाती है,
कभी ये शहर दुनिया  की राहों पर चलता है,
तो कभी ये शहर ये दुनिया चलाती है।

कभी ज़िन्दगी खूबसूरत है यहाँ पर,
तो कभी मौत भी यहाँ मरती है,
कभी ईशवर पर ही विशवास होता है,
तो कभी ईशवर से ही शिकायत करती है।


कभी इसी शहर में दिल मेरा बस्ता है,
तो कभी यहाँ ये भाग जाने को दिल करता है,
हर बात पर ये कहता है,
मेरे अन्दर मेरा खुद का शहर रहता है।  

मौत से मुलाकात

एक दिन मिली अंधेरों में मौत मुझे,
कहने लगी आज तो साथ लेके जाऊंगी तुझे,
चल आज मैं तुझे सारे  बंधनों से मुक्त करती हूँ,
और तुझे इस दिखावे की दुनिया से दूर ले चलती हूँ।

मैंने भी सोचा आज इसकी हर बात का जवाब दूंगा,
और आज कुछ ऐसा कहोंगा की मौत को भी जीना सिखा दूंगा।

बोली चल तुझे ले चलती हूँ ईशवर के पास,
जिसने ये जहां बनाया है,
मैंने कहा अनाथ तो तू है,
मैंने तो अपने माँ बाप में ही ईशवर पाया है।

बोली चल इस मतलबी दुनिया से दूर
जहाँ हर किसी के दिल में नफरत का बीज पलता है ,
मैंने कहा फिर तो तूने दुनिया देखि ही कहाँ है,
ज़रा मिल कर देख दोस्तों से मेरे,
जहाँ हर कोई हाथों में दिल लिए चलता है।

फिर कुछ चिड कर बोली, इस दुनिया में नहीं कहीं सच्चा प्यार है,
लालच और धोखे में ये दुनिया बर्बाद है,
मैंने कहा क्यूँ घमंड उस ईशवर की बनाई धरती पर करती है,
ये धरती आज इसी प्यार की वजह से आबाद है।

गुस्से में आखिर बोल पड़ी वो की दे दे अपनी जान,
इस दुनिया में नहीं किसी को सदा के लिए रहना,
मैं हँस कर बोल, एक बार जी के देख ले ये ज़िन्दगी ऐ मौत,
तेरे भी जान न निकल जाये तो कहना …